पश्चिम बंगाल सरकार को कलकत्ता हाईकोर्ट में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने की अनुमति मिली, जिसमें संजय रॉय को आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के लिए मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. राज्य ने महाधिवक्ता किशोर दत्ता की ओर से सजा को मृत्यु दंड में बदलने की मांग यह कहते हुए कि अपराधी कठोर दंड का हकदार है. सियालदह अदालत ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिरबन दास की अध्यक्षता में यह अपील की, जिसमें रॉय को दोषी ठहराया गया था, लेकिन अपराध को “दुर्लभतम” के रूप में वर्गीकृत करने से इनकार कर दिया गया था, जो भारत में मृत्यु दंड के लिए आवश्यक मानदंड है. इसके बजाय, अदालत ने रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया. अदालत ने राज्य सरकार से पीड़ित के परिवार को 17 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया, लेकिन पीड़िता के परिवार ने ऐसा नहीं किया.
ममता बनर्जी ने कहा कि जब कोई राक्षस होता है, तो समाज इंसान हो सकता है क्या? कभी-कभी वे कुछ वर्षों बाद बाहर आ जाते हैं; अगर कोई अपराध करता है, तो क्या हमें उन्हें माफ करना चाहिए? मैं कहती हूँ कि यह दुर्लभ, संवेदनशील और जघन्य है; अगर कोई अपराध करता है और बच जाता है, तो फिर से करेगा. हमारा काम उनकी रक्षा करना नहीं है; अगर यह मामला कोलकाता पुलिस के अधिकार क्षेत्र में होता तो परिणाम अलग हो सकते थे. बनर्जी ने प्रेस वार्ता में कहा “हम सभी ने मृत्युदंड की मांग की है, लेकिन अदालत ने मृत्यु तक आजीवन कारावास की सज़ा दी है… मामला हमसे जबरन छीन लिया गया. अगर यह (कोलकाता) पुलिस के पास होता, तो हम सुनिश्चित करते कि उसे मृत्युदंड मिले,”बता दें कि पहली जांच कोलकाता पुलिस ने की थी, लेकिन विरोध कर रहे डॉक्टरों के आरोपों के बाद मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. अंतिम बहस में दोषी ने कहा कि उसे फंसाया गया था, लेकिन अदालत ने कहा कि उसके खिलाफ आरोप साबित हो गए हैं.