Pahalgam Attack : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने विजयादशमी उत्सव (दशहरा) के मौके पर नागपुर में स्वयंसेवकों को संबोधित किया। संघ के 100 वर्ष पूरे होने के संदर्भ में दिए गए उनके संबोधन में राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर आर्थिक आत्मनिर्भरता और सामाजिक सद्भाव तक कई महत्वपूर्ण विषयों को छुआ गया।

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उनके संबोधन के 8 मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

1. पहलगाम आतंकी हमला और करारा जवाब
मोहन भागवत ने पहलगाम आतंकी हमले को एक दुखद घटना बताया, जहाँ आतंकवादियों ने धर्म पूछकर 26 भारतीयों की हत्या की। उन्होंने इस हमले पर भारत की सरकार और सशस्त्र बलों द्वारा दिए गए करारे जवाब की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमारे सच्चे मित्रों और शत्रुओं के रुख को भी स्पष्ट किया है, जिसके प्रति देश को और सतर्क रहने की आवश्यकता है।
2. स्वदेशी और टैरिफ नीति पर बल
उन्होंने आर्थिक निर्भरता के मुद्दे को उठाते हुए अमेरिका की नई टैरिफ नीति का जिक्र किया, जिससे वैश्विक व्यापार प्रभावित हुआ है। भागवत ने चेतावनी दी कि दुनिया एक-दूसरे पर निर्भर है, लेकिन यह निर्भरता मजबूरी में नहीं बदलनी चाहिए। उन्होंने मौजूदा अर्थ प्रणाली पर पूरी तरह से निर्भर न रहने और स्वदेशी एवं स्वावलंबी जीवन जीने का आह्वान किया।
3. पड़ोसी देशों में अस्थिरता और अराजकता
भागवत ने नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शनों और अशांति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंसा और विद्रोह किसी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हैं, क्योंकि वे केवल अराजकता फैलाते हैं। उन्होंने कहा कि बदलाव केवल लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीके से ही संभव है।
4. बाहरी ताकतों को हस्तक्षेप का मौका
सरसंघचालक ने हिंसक आंदोलनों और अराजकता पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में देश के बाहर की ताकतों को अपने खेल खेलने और हस्तक्षेप करने का मौका मिल जाता है। उन्होंने देश की आंतरिक एकता और शांति को बनाए रखने पर जोर दिया ताकि कोई बाहरी शक्ति इसका लाभ न उठा सके।
5. प्राकृतिक आपदाओं और समाज की पहल
उन्होंने देश में आई प्राकृतिक आपदाओं और विपरीत परिस्थितियों के दौरान समाज की प्रतिक्रिया का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि देश की युवा पीढ़ी में अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम बढ़ा है और समाज खुद को सक्षम महसूस करता है। सरकार की पहल से समाज स्वयं ही समस्याओं के निदान की कोशिश कर रहा है, जो एक सकारात्मक संकेत है।
6. सामाजिक समरसता और सद्भाव का महत्व
भागवत ने समाज के विभिन्न वर्गों में सामाजिक समरसता और सद्भाव को बनाए रखने पर सबसे अधिक जोर दिया। उन्होंने कहा कि समाज की एकता और परस्पर सद्व्यवहार किसी भी राष्ट्र के लिए परम सत्य है। उन्होंने सभी से अपील की कि वे मतभेद भुलाकर समाज की एकात्मता को मजबूत करें।
7. आरक्षण का समर्थन और समदृष्टि का आह्वान
उन्होंने आरक्षण की नीति का समर्थन करते हुए कहा कि हमें समाज के कमजोर वर्गों की जरूरतों को समझना होगा। उन्होंने कहा कि जैसे परिवार के मजबूत सदस्य कमजोर सदस्यों के लिए अधिक प्रावधान करते हैं, वैसे ही समाज को भी समदृष्टि और अपनत्व के भाव से जरूरतमंदों की आवश्यकताओं पर विचार करना चाहिए।
8. ‘धर्म’ राष्ट्र का ‘स्व’ है, केवल मजहब नहीं
मोहन भागवत ने ‘धर्म’ शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि ‘धर्म’ भारत का ‘स्व’ (Self) है, न कि केवल एक मजहब। उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारे लिए धर्म का अर्थ पूजा, खान-पान या रीति-रिवाज नहीं है, बल्कि यह वह आध्यात्मिक आधार है जो सभी को साथ लेकर चलता है और सभी का कल्याण करता है। विश्व को इसी ‘धर्म की दृष्टि’ देने की आवश्यकता है।