खोकली (Acalypha indica) लगभग 75 सेमी ऊँचा पौधा होता है। इसके पत्ते 3-8 सेमी लंबे, अंडाकार अथवा चतुर्कोण-अंडाकार से होते हैं। पत्तों में प्राय: तीन शिराएं होती हैं और उनके किनारे दंतुर होते हैं, पत्तों को डंठल पत्तों से भी लंबे होते हैं। फूल छोटे-छोटे होते हैं तथा पत्तों के कक्ष में, स्पाइक जैसे, सीधे गुच्छों में लगते हैं। मादा पुष्प के नीचे एक तिकोना-सा सहपत्र होता है। नरपुष्प अत्यंत छोटे होते हैं, तथा स्पाइक के ऊपरी भाग में लगते हैं। फल रोयेंदार होते हैं तथा सहपत्रों में ढके रहते हैं।

अन्य नाम:
हिंदी-कुप्पी;
संस्कृत-हरित्तमंजरी;
कन्नड़-कुप्पीगिडा;
गुजराती-वेंछिकांटो, चररजो-झाड़, रुंछाडो-दादरो;
तमिल-कुप्पेमणि;
तेलुगु-कुप्पेमणि;
बंगला-मुक्तझूरि, मुक्तबर्सी;
मराठी-खोकली;
मलयालम-कुप्पामणि
व्यापार कार्य का नाम आकालिफ़ा वैज्ञानिक नाम पर आधारित है।
प्राप्ति-स्थान
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औषधीय गुण
खोकली के पौधों पर जिस समय फूल आते हैं, उस समय उन्हें समूचा उखाड़कर सुखा लेते हैं और औषधि में प्रयोग करते हैं। इस पौधे में ईपेकाक जैसे गुण बताते हैं। यह (ब्रोंकाइटिस) श्वास नली की सूजन, श्वासरोग या दमा, निमोनिया तथा गठिया में उपयोगी है। इसकी जड़ व पत्ते रोचक होते हैं। पत्तों का रस वमनकारी होता है, अर्थात उसके सेवन से कै हो जाती है। ताजे पत्तों को पीस कर फोड़ों पर भी लगाते हैं।